Baldeogarh Fort | बल्देवगढ़ का किला
Baldeogarh Fort आज भी राजा रजवाड़ों के वीरता के कई किस्सें सुना रहा है। आज भी पुरातन काल की भव्य निशानियां सीना ताने खडी है। कदम-कदम पर है शौर्य और शिल्प कला के नमूने पहाड़ों एवं पत्थरों पर बिखरी है गुजरे जमाने की अनमोल यादें. जो बता रही हैं गुजरी सदी की भव्यता को. कहीं देवी के मंदिरों ने लोगों को अपने से बांधे रखा, तो कहीं सरोवर किनारे जीवन फलफूल रहा है। परकोटे से नजर आता है आने वाला कल भौरमय सूरज की पहली किरण जब इन धरोहरों को छूती है तो ऐसा लगता है कि गुजरा हुआ जमाना फिर जाग उठेगा।
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ओरछा रियासत की सबसे सुरक्षित नगरी बल्देवगढ़ मानी जाती है, जहां महाराजा विक्रमाजीत सिंह ने युद्ध सामग्री भंडारण एवं सैन्य अड्डा के लिए रियासत में सबसे उपयुक्त स्थान मानते हुए दुर्ग का निर्माण कराया गया था। जब महाराजा विक्रमादित्य सिंह ने मराठों के आतंक एवं लूट मारी से परेशान होकर सन् 1783 में राजधानी ओरछा से हटाकर टीकमगढ़ में स्थापित की, तो सैनिक अड्डा एवं युद्ध सामग्री भंडारण के लिए 55 से 70 एकड़ में दुर्ग का निर्माण कराया. जों सुरक्षा की हर कसौटी पर खरा पाया गया।
प्रथम मुख्य दरवाजा किला दरवाजा है जो बड़े पहाड़ को काटकर पश्चिमी दिशा में बना है। दूसरा दरवाजा सामान्य जन एवं राज्य कर्मचारियों की आवाजाही के लिए बस्ती एवं किले के मैदान की ओर उत्तर दिशा में है. पहाड़ पर बनी इस ऊंचे पहाड़ की गणना बुंदेलखंड के व्यवसायिक बड़े किलो में होती है। यह किला काफी ऊंचा बड़े विस्तार में एवं सूर्य परकोटे के अंदर आक्रमणियों की मार से सुरक्षित था, जिसें गिरीदुर्ग होने पर भी महाराजा ने इसे जलदुर्ग बना दिया था। यह किला तीनों ओर से ग्वालसागर, जुगलसागर एवं धर्मसागर तालाब से घिरा हुआ है।
गर्भगिरावन तोप की कहानी
बुंदेलखंड में आज भी जब रौब जमाने की बात हो तो सहसा ही बल्देवगढ़ की तोप का नाम जुबान पर आ जाता है। जानकार बताते हैं कि इतिहास में सिर्फ एकबार ही तोप चली थी, जिसकी भयंकर गर्जना से क्षेत्र में बड़ी संख्या में महिलाओं का गर्भपात हो गया था। इसलिए खलका की तोप को गर्भगिरावन नाम से भी जाना जाता है। दीवानखाना के नजदीक मंदिर निर्माण कर बल्दाऊजू की स्थापना के साथ ही बांध गांव को बल्देवगढ़ कहा जाने लगा। नबल्दाऊजू मंदिर के पास ही तोपखाना भवन था, जिसमें भुवानी शंकर विशाल तोप गाड़ी पर तैयार खड़ी रहती थी।
पहाड़ों एवं कंजरों को काटकर बनाए गए भव्य किले के साथ आल्हा मुंडा का निर्माण किया था।इतिहासकारों के अनुसार किलें मैदान में राजा के द्वार में आयोजित कुश्ती में पहलवान अपना दम-खम दिखाया करते थे, जहां एक बार बुंन्देलखण्ड के सेनापति एवं अपनी वीरता के लिए विख्यात माने जाने वालें उदल के बड़े भाई आल्हा ने कुश्ती में भाग लेकर विजय हासिल की राजा विक्रमादित्य ने आल्हा को सबसे उचे स्थान पर बने भवन को भेंट किया। उस स्थान को आल्हा मुंडा का नाम दिया।
यहां आने वाले सैलानियों के लिए अंदर बने वास्तुकला को देखकर मोहित भी हो जाते है. यहां एक ऐतहासिक तालाब भी है। इसी तालाब के बीचोबीच बना शिवमंदिर एवं टापू सुन्दरता को बढ़ावा देता है। तालाब से किला घिरे होने से सुरक्षित रहा। यह तालाब लोगों की आजीवका का जीवनदायक साबित हुआ हैv जानकार बताते है कि तालाब खुदवाकर राजा ने सोने का हिडोला मंगाया, जिसमे ग्वाल-ग्वालन को बैठाकर तीन बार झुलाने पर ही तालाब भर गया था। वहीं तालाब से लगी एक बावड़ी बनी है, जहां रानियां नहाकर उसी के बीच बने मंदिर में पूजा अर्चना करती थी। Baldeogarh fort बुंदेलखंड के महत्वशाली किलों में एक है, जो शत्रुओं के लिए सदा एक चुनौती बना रहा.दुश्मन भी इसके नाम से थर-थर कांपते थे।
बल्देवगढ़ – यह नगर टीकमगढ़-छतरपुर रोड़ पर टीकमगढ़ से 26 किमी. दूर स्थित है। खूबसूरत ग्वाल सागर कुंड के ऊपर बना पत्थर का विशाल किला यहां का मुख्य आकर्षण है। एक पुरानी और विशाल तोप आज भी किले में देखी जा सकती है। जब महाराजा विक्रमादित्य सिंह ने मराठों के आतंक एवं लूट मारी से परेशान होकर सन् 1783 में राजधानी ओरछा से हटाकर टीकमगढ़ में स्थापित की, तो सैनिक अड्डा एवं युद्ध सामग्री भंडारण के लिए 55 से 70 एकड़ में दुर्ग का निर्माण कराया. जों सुरक्षा की हर कसौटी पर खरा पाया गया।
प्रथम मुख्य दरवाजा किला दरवाजा है जो बड़े पहाड़ को काटकर पश्चिमी दिशा में बना है.एक पहरेदारकक्ष एवं संकरा पुल जो किले के तीन तरफ बनी खाई को पाटकर अंदर किले में ले जाता था। खाई में काँटेदार केक्टस,केवड़ा आदि जलीय पेड़ लगाये गये थे ताकि दुश्मन प्रवेश करे तो पुल पर से नीचे गिरा दिया जाये .वहाँ इन पेड़ों में जहरीले अजगर,विभिन्न सर्प मौजूद रहा करते थे तालाब का पानी इस खाई में भरा रहने से किला अभेद्य होता था . अगला दूसरा द्वार पहरेदारों के खड़े होने के लिये काफी चौड़ा था।
दूसरा दरवाजा सामान्य जन एवं राज्य कर्मचारियों की आवाजाही के लिए बस्ती एवं किले के मैदान की ओर उत्तर दिशा में है। पहाड़ पर बनी इस ऊंचे पहाड़ की गणना बुंदेलखंड के व्यवसायिक बड़े किलो में होती है। यह किला काफी ऊंचा बड़े विस्तार में एवं सूर्य परकोटे के अंदर आक्रमणियों की मार से सुरक्षित था, जिसें गिरीदुर्ग होने पर भी महाराजा ने इसे जलदुर्ग बना दिया था। यह किला तीनों ओर से ग्वालसागर, जुगलसागर एवं धर्मसागर तालाब से घिरा हुआ है।
फिर तीन द्वार और पीछे तक जाने के लिये बने हैं वहाँ एक काला खड़ा पहाड़ है जो तालाब को गहराई देता है। एक पुरानी और विशाल बंदूक आज भी किले में देखी जा सकती है। बुंदेलखंड में आज भी जब रौब जमाने की बात हो तो सहसा ही Baldeogarh fort की तोप का नाम जुबान पर आ जाता है। जानकार बताते हैं कि इतिहास में सिर्फ एकबार ही तोप चली थी।
जिसका नाम गर्भगिरावनी तोप था, क्योंकि कहा जाता है कि जब यह तोप युद्ध के समय चलती थी,तब इसके वेग से गर्भवती माताओं के गर्भ गिर जाते थे। एवं कुछ अन्य छोटीं तोपें,इनके ऐतिहासिक महत्व एवं सुरक्षा को देखते हुये भोपाल के म्यूजियम में पहुँचा दीं गईं हैं। इसी तोप के नाम पर यहाँ कहावत बनी “बल्देवगढ़ की तोप अर्थात बहुत बड़ी हस्ती, किले के दक्षिणी छोर पर तालाब के तट पर खंडहर होते हुये।
हिस्से में अत्यंत प्राचीन बलदेव जी का मंदिर है जिनके नाम से बलदेवगढ़ पड़ा। किले ऊपरी हिस्से में सात मढ़ियाँ बनी हुयीं हैं जिनसे झाँकने पर चारों ओर का नजारा लिया जा सकता है। यहाँ से 4 कि.मीं. दूर टीकमगढ़ रोड पर एक छोटी सी पहाड़ी पर माँ विंध्यवासिनी देवी मंदिर, बलदेवगढ़ का लोकप्रिय मंदिर है। चैत के महीने में सात दिन तक चलने वाले विन्ध्यवासिनी मेला यहां लगता है।
यहां पान के पत्तों का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।यदि इस स्थान को पर्यटन की दृष्टि से सुरक्षित किया जाये यहाँ बहुत सुँदर पुरातत्व से भरपूर किला,बावड़ी एवं सामग्री मिल सकती। तालाब से किला घिरे होने से सुरक्षित रहा. यह तालाब लोगों की आजीवका का जीवनदायक साबित हुआ। टीकमगढ़ जिले में बुंदेला राजाओ की जागीरें और रियासतें रही है।
सारा बुंदेलखंड बदल रहा है और आगे बढ़ रहा है।
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