History Of Sagar City | सागर का इतिहास

History Of Sagar City | सागर का इतिहास


History Of Sagar City Madhya Pradesh को गुप्त वंश के शासनकाल में सर्वाधिक महत्व मिला। उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से छठी शताब्दी में यह उत्तर भारत के महाजनपदों में से एक चेदी साम्राज्य का हिस्सा बन गया था। इसके बाद इसे पुलिंद शहर में शामिल कर लिया गया।


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यह राजकीय तथा सैन्य गतिविधियों का महत्वपूर्ण केन्द्र था। नौवीं शताब्दी में चंदेल और कल्चुरी राजवंशों ने यहां राज किया। इसके बाद परमारों का और फिर तेरवीं व चौदहवीं शताब्दी में मुगलों का शासनकाल यहां था। ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के अनुसार सागर का प्रथम शासक श्रीधर वर्मन को माना जाता है।

पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सागर पर गौंड़ शासकों ने कब्जा जमाया। फिर महाराजा छत्रसाल ने धामोनी, गढ़ाकोटा और खिमलासा में मुगलों को हराकर अपनी सत्ता स्थापित की लेकिन बाद में इसे श्रीमंत बाजीराव पेशवा ने पंडित गोविंद पंत बुंदेले को सौपा इसके बाद मामलतदार श्रीमंत गोविंद पंत ने सागर शहर की स्थापना की ।

साल्वै की सन्धि के बाद इसे अंग्रेजो को सौंप दिया। सन् 1818 में अंग्रेजों ने अपना कब्जा जमाया और यहां ब्रिटिश साम्राज्‍य का आधिपत्य हो गया। सन् 1861 में इसे प्रशासनिक व्यवस्था के लिए नागपुर में मिला दिया गया और यह व्यवस्था सन् 1956 में नए मध्यप्रदेश राज्‍य का गठन होने तक बनी रही।

सागर. मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण शहर है। जब ऊदनशाह ने तालाब के किनारे स्थित वर्तमान किले के स्थान पर एक छोटे किले का निर्माण करवा कर उस के पास परकोटा नाम का गांव बसाया था। निहालशाह के वंशज ऊदनशाह द्वारा बसाया गया वही छोटा सा गांव आज सागर के नाम से जाना जाता है। परकोटा अब शहर के बीचों-बीच स्थित एक मोहल्ला है।


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